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Yoga Anubhav - Exploring the Transformative Journey

Updated: Feb 16



Yoga Anubhav
Yoga Anubhav

 मीठा सा दर्द शरीर में 

हर वक़्त महसूस करने लगा हूँ।

लगता है शायद 

मैं योगा करने लगा हूँ!!


सुबह सवेरे यूहीं जल्दी उठ जाता हूँ

हाथ पाओ को मरोड़ के 

ना जाने कौन सी ख़ुशी पाता हूँ

आँखों को करके बंद 

जब बैठ जाता हूँ

ना जाने मैं कहा चला जाता हूँ।


मन कि गहराइयों में अपने 

अब झांकने लगा हूँ।

लगता है शायद 

मैं योगा करने लगा हूँ।।


अब किसी से मिलता हूँ तो 

हाथ स्वयं जुड़ जाते है।

मन के मेरे सारे भाव।

स्थिर से हो जाते है॥


उस सत्य कों जानने कि 

अब भूख़ बहुत प्रचंड हैं

हर चीज़ पे आँखें अचम्भ हुई|

अब जीवन बस एक छंद है॥


मन में जिज्ञासाओं को लेकर 

अर्थों को तलाशने  लगा हूँ

जीवन अब स्वयं ही तराशने लगा हूँ॥

इसीलिए लगता हूँ।

शायद मैं योगा करने लगा हूँ।।


सर्दियों में भी ठंडे पानी से नहाना,

सात पर्वतों पे एक एक कर 

एक बार में चढ़ जाना।

भक्ती, क्रिया, कर्म और ज्ञान|

नमन पंच वायु, नमन योग के आठों आयाम 


आप शक्तियों का ही विस्तार तो 

हर जगह पा जाता हूँ

इसीलिए हाथों को जोड़कर 

बस वही खड़ा हो जाता हूँ।।


जीवन कि इस पूर्णता को 

पहचानने लगा हूँ।

लगता है शायद मैं भी 

अब कुछ जानने लगा हूँ।।



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